Swadeshi Gopalan

in #india6 years ago

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Why is indigenous cow

From ancient times our country would have Gauappal
The cow is being considered as wealth and religion here.
This Goumaata is the main basis of our agriculture. Agriculture
Principal work on this land of India without cow protection
Could not be imagined. God
To increase the glory of Gautama by taking Krishna himself
Tireless efforts were made. That's why we all
Called by Govind or Gopal.
In the present era, we also like Gauplan
Have started doing. There's Charshankankar Guy in this country
Bring the rivers of milk to fetch. Your indigenous
The Govans are being destroyed by destroying them. But this
The exotic breed's cow's natural environment
Is not able to live in
Like the oxen, the plow or carriage are holding. This just
The characters of the show have become mere characters. Nor does it taste the milk of these foreign cows that occurs in our native cow's milk.
Are we really poor in our indigenous breed? This is
There is a conspiracy to destroy all the Goumata.
Come on! See some facts about our Goumaata? Which will help us to remove our confusion-
(1) In India, we get 32 ​​sacks of urea, 18 sacks of super phosphate and 54 sacks of potash from each cow naturally in the existing Gowda.
(2) We get 22 lakh tonne of cow dung worth Rs. 55 crores per day from guarding.
(3) The cow consumes every day the value of the feed. It produces dung worth 5 times more than that.
(4) Every day 10 kg cow dung and 18 liters of cow urine are obtained from the cow. Along with the milk separately. Which is the main source of income.
(5) Each Indigenous Gowda can produce 4500 liters of biogas during his lifetime, which provides equal energy equivalent to burning 68 million tonnes of wood. That is, protection of guarding can save 1 crore trees per year.

स्वदेशी गौपालन क्यों

अतिप्राचीन काल से हमारे देश में गौपालन होता
आ रहा है ।यहाँ गाय को धन व धर्म माना जाता रहा है।
यही गौमाता हमारी कृषि का मुख्य आधार है। कृषि
प्रधान इस भारत भू पर गौपालन के बिना कृषि कार्य
की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। परमात्मा ने
स्वयं कृष्णावतार लेकर गौमाता की महिमा बढ़ाने का
अथक प्रयास किया था। इसीलिए इन्हें हम सभी ग्वाला
गोविन्द या गोपाल नाम से पुकारते हैं।
वर्तमान युग में हम भी पश्चिम की तरह गौपालन
करने लगे हैं। वहाँ की वर्णशंकर गाय इस देश में
लाकर दूध की नदियां बहाना चाहते है। अपने स्वदेशी
गौवंश को घटिया बताकर नष्ट करते जा रहे हैं। मगर ये
विदेशी नस्ल की गाय ने तो यहाँ के प्राकृतिक वातावरण
में रह पा रही है तथा न ही उनके बछड़े हमारे यहाँ के
बैलों की तरह हल या गाड़ी जोत पा रहे हैं। ये सिर्फ
दिखावे के पात्र, मात्र बनकर रह गए हैं। न ही इन विदेशी गायों के दूध में वो स्वाद होता है जो हमारी देशी गाय के दूध में होता है।
क्या वास्तव में हमारी देशी नस्ल की गायें घटिया हैं? या ये
सब गौमाता को नष्ट करने का षडयंत्र है।
आइये ! हमारी गौमाता के बारे में कुछ तथ्य देखें ? जो हमारे भ्रम को हटाने में सहयोग देंगे-
(1) भारत में विद्यमान गौधन में प्रत्येक गाय से प्राकृतिक रूप से हमें 32 बोरी यूरिया, 18 बोरी सुपर फास्फेट तथा 54 बोरी पोटाश प्राप्त होता है।
(2) गौधन से हमें प्रतिदिन 55 करोड़ रुपये मूल्य का 22 लाख टन गोबर प्राप्त होता है।
(3) गाय जितने मूल्य का प्रतिदिन चारा खाती। है, उससे 5 गुना अधिक मूल्य का गोबर पैदा करती है।
(4) गाय से प्रतिदिन 10 किलो गोबर तथा 18 लीटर गौमूत्र प्राप्त होता है। साथ ही दूध अलग से देती है । जो आय का मुख्य साधन है।
(5) प्रत्येक स्वदेशी गौधन अपने जीवन काल में 4500 लीटर बायोगैस उत्पन्न कर सकता है जो 6.8 करोड़ टन लकड़ी जलाने के बराबर ऊर्जा प्रदान करती है। यानि गौधन के संरक्षण से प्रति वर्ष 1 करोड़ वृक्षों की रक्षा की जा सकती है।

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