अटल बिहारी वाजपेयी जी।
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दोस्तों कल गुरुवार शाम अटल बिहारी वाजपेयी जी ९३ वर्ष की उम्र में हमे छोड़कर चले गए। उनकी याद में दोस्तों उनकी एक बहुत सुंदर कविता सुनाता हूं।
ठन गई!
मौत से ठन गई!
जुझने का मेरा इरादा न था,
मॉड पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर खडी हो गई,
यो लगा ज़िंदगी से बडी हो गई।
मौत की उम्र क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िंदगी सिलसिला, आजकल की नहीं,
मैं जी भर जीया, मैं मन से मरु,
लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरु?
तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आजमा,
मौत से बेखबर, ज़िंदगी का सफर,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।
बात ऐसी नही की कोई गम ही नहीं,
दर्द अपने-पराये कुछ कम नहीं ।
प्यार इतना परायों से मुज़को मिला,
न अपनो से बाकी है कोई गिला,
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आँधियोंमें जलाये है बुझते दीये।
आज ज़कज़ोरता तेज़ तूफान हैं,
नाव भवरों की बाहों में महेमान है।
टिप्पणीया पार पाने का कायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफान का, तेवरी तन गई,
मौत से ठन गई!
अटल बिहारी वाजपेयी ।