The Science Game || Electrical engineering|| My first Technical Dairy

in Hindwhale Community2 years ago

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नमस्कार दोस्तों,



आप लोग कैसे हैं, आशा है कि आप सभी स्वस्थ और
विकासोन्मुख होंगे ।
आज मैं अपने अध्ययनरत विषय विद्युत अभियंत्रण से संबंधित एक महत्वपूर्ण युक्ति के बारे में जानकारी देने के लिए अति उत्साहित हूं। आज मैं आप लोगों को ट्रांसफार्मर के बारे में बताने जा रहा हूं।

TRANSFORMER

सामान्य परिचय

ट्रांसफॉर्मर को हिंदी में परिणामित्र कहा जाता है जिसका अर्थ होता है एक रूप के स्तर को उसी रूप के दूसरे स्तर में परिवर्तित करना। ट्रांसफार्मर एक स्थैतिक मशीन है अर्थात इसके अंदर प्रयोग किए गए सभी भाग स्थिर अवस्था में रहते हैं कोई भी भाग गति नहीं करता है। यह युक्ति प्रत्यावर्ती धारा पर काम करती है। यह निश्चित आवृत्ति पर उच्च विभव को निम्न विभव में और निम्न विभव को उच्च विभव में परिवर्तित करती है इस पूरी स्थिति में आवृत्ति हमेशा समान रहती है।

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TRANSFORMER

आंतरिक परिचय

ट्रांसफॉर्मर का कार्य सिद्धांत फेराडे के स्थैतिक प्रेरण सिद्धांत पर आधारित होता है । सामान्यतः एक ट्रांसफार्मर ऐसे चुंबकीय परिपथ से बना होता है जिसमें दो मुख्य वाइंडिंग होती है जिनमें से एक को प्राइमरी वाइंडिंग तथा दूसरी को सेकेंडरी वाइंडिंग कहते हैं । जब प्रत्यावर्ती धारा को प्राइमरी बाइंडिंग पर प्रेषित की जाती है तो कोर में प्रत्यावर्ती फ्लक्स उत्पन्न होता है यह फ्लेक्स सेकेंडरी वाइंडिंग से भी प्रभावित होता है जिससे सेकेंडरी वाइंडिंग में एक प्रत्यावर्ती विद्युत वाहक बल प्रेरित होता है।

विद्युत वाहक बल व्यंजक
     E=4.44N¢f  
जहां , E - प्रेरित विद्युत् वाहक बल
                 N-  वर्तनो की संख्या
                ¢  - अधिकतम फ्लक्स
                f -  प्रेषित आवृत्ति

यह क्रिया दोनों वाइंडिंग के बीच इंडक्शन के कारण होती है।

ट्रांसफार्मर को प्रत्यावर्ती धारा पर ही प्रयोग किया जाता है यह दिष्ट धारा पर काम नहीं करता क्योंकि दिष्ट धारा में धारा का मान हर समय एक समान रहता है जो समय की दर से परिवर्तित नहीं होता है जिससे फ्लक्स में परिवर्तन नहीं होता फलस्वरूप विद्युत वाहक बल प्रेरित नहीं हो पाता और युक्ति वैभव को परिवर्तित नहीं कर पाती।
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FLUX CIRCUIT

प्रकार

ट्रांसफार्मर दो प्रकार के होते हैं एक को उच्चायी ट्रांसफार्मर तथा दूसरे को अपचायी ट्रांसफार्मर कहते हैं । उच्चायी ट्रांसफार्मर वह होता है जो निम्न विभव को उच्च विभव में परिवर्तित करता है इसके लिए प्राइमरी वाइंडिंग में वर्तनों की संख्या सेकेंडरी वाइंडिंग से कम रखी जाती है जबकि अपचायी ट्रांसफार्मर में उच्च विभव, निम्न विभव में परिवर्तित करता है, जिसकी प्राइमरी वाइंडिंग में बर्तनों की संख्या सेकेंडरी वाइंडिंग से अधिक है।

भाग

ट्रांसफार्मर में मुख्यतः निम्न भाग होते हैं

(i) क्रोड -

ट्रांसफार्मर में प्रयोग होने वाली क्रोड कास्ट आयरन की पतली पतली पत्तियों से बनी होती है।

ट्रांसफार्मर में क्रोड का कार्य वही होता है ,जो कार्य दो शहरों को जोड़ने वाली सड़क करती है।

यह क्रोड फ्लक्स के लिए चुंबकीय पथ का प्रदान करती है। ट्रांसफॉर्मर में क्रोड E,I,L, U आकार की बनाई जाती हैं ।
क्रोड टाइप ट्रांसफॉर्मर में एक ही चुंबकीय पथ होता है।

(ii) वाइंडिंग और विद्युतरोधन -

ट्रांसफार्मर में मुख्यतः दो वाइंडिंग होती हैं , ट्रांसफॉर्मर को जिस ओर सप्लाई दी जाती है उसे प्राइमरी वाइंडिंग तथा जिस ओर से सप्लाई ली जाती है उसे सेकेंडरी वाइंडिंग कहते हैं । इन वाइंडिंग्स में बर्तनों की संख्या , ट्रांसफार्मर की ट्रांसफॉरमेशन रेश्यो तथा वाइंडिंग में प्रयोग किए गए चालक के क्रॉस सेक्शनल एरिया एवं ट्रांसफार्मर की धारा वहन क्षमता पर निर्भर करती है।
इन वाइंडिंग को परस्पर विद्युत रोधित कर के लिए विभिन्न परतों के बीच वार्निश युक्त पेपर का प्रयोग किया जाता है ।

(iii) टैंक -

ट्रांसफॉर्मर को जिस भाग के अंदर रखा जाता है उसे टैंक कहते हैं दोनों वाइंडिंग को कोर के साथ टैंक के अंदर रख दिया जाता है और इस टैंक में एक प्रकार का द्रव भर दिया जाता है जिससे ट्रांसफॉर्मर ऑयल कहते हैं यह ट्रांसफॉर्मर ऑयल वाइंडिंग को विद्युत रोधन और शीतलन प्रदान करता है। तीन शीतलीकरण के लिए ट्रांसफार्मर के टैंक में खोखली नलिकाएं लगी रहती है जिनमें से गर्म ट्रांसफॉर्मर ऑयल बहकर ठंडा होता रहता है।

(iv) टर्मिनल बॉक्स

प्राइमरी और सेकेंडरी वाइंडिंग के टर्मिनल सिरो के टर्मिनल बॉक्स के टर्मिनल पर लगाया जाता है ।यह ब्रास(पीतल) का बना होता है तथा टर्मिनल प्लेट बेकलाइट या किसी अन्य इंसुलेटेड मैटेरियल की बनी होती है यह टर्मिनल बॉक्स टैंक के ऊपर या किसी साइट पर लगाया जाता है।

(v) अन्य सामान -

इन सबके अतिरिक्त कुछ अन्य सामान भी बड़े शक्तिशाली ट्रांसफार्मरों के सही प्रचालन के लिए लगाए जाते हैं जैसे कि ब्रीदर, बुखहोल्ज रिले, कंजरवेटर टैंक, वेंट पाइप, टैपचेंजर इत्यादि।

अच्छी ट्रांसफॉर्मर ऑयल की विशेषताएं:

IS :335-1972 के अनुसार ट्रांसफार्मर में प्रयोग किए जाने वाले तेल में निम्नलिखित विशेषताएं होनी चाहिए-

(i) परावैद्युत सामर्थ्य 60 सेकंड के लिए :40KV(rms)/4mm
(ii) न्यूनतम फ्लैश प्वाइंट-140 डिग्री सेल्सियस
(iii) आपेक्षिक घनत्व - 0.85से 1.88तक
(iv) मैक्सिमम पोर प्वाइंट- 90डिग्री सेल्सियस
(v) NTP पर मैक्सिमम अम्लीयता - 0.05mg KOH/g
(vi) स्लज मान - 1.2% से ज्यादा नहीं।
(vii) NTP पर मैक्सीमम श्यानता - 27Cst
इसके अतिरिक्त ट्रांसफार्मर तेल स्वच्छ नमी से मुक्त तथा अन्य हानिकारक तत्वों से मुक्त होना चाहिए।

ट्रांसफार्मर की रेटिंग किलो वोल्ट एंपीयर (KVA)में दी जाती है

आशा है कि हमारी यह जानकारी आपके ज्ञानवर्धन में सहायक सिद्ध होगी

धन्यवाद

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