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RE: सुख : स्वरूप और चिन्तन (अंतिम भाग # ४) | Happiness : Nature and Thought (Final Part # 4)
आज एक युग में मनुष्य एक अंधेरी दोड दोड रहा हे उसमे वह सबकुछ भुलता जा रहा हे रिस्तो की एहमियत कम हो गयी हे हर कोई इस दुनिया पर अपना वर्चस्वः कायम करना चाहता हे