पंचतंत्र का पहला तंत्र "मित्रभेद"

पंचतंत्र के विषय में, दक्षिण भारत के एक नगर महिलारोप्य, के राजा अमरशक्ति की कहानी बताई जाती है। जिसमें यह बताया गया है कि किस तरह विद्वान् आचार्य विष्णुशर्मा ,राजा के मूर्ख पुत्रों को छः महीनो में ही कहानियों के माध्यम से, सुशिक्षित करने में सफल होते हैं।

पंचतंत्र का पहला तंत्र, या पहला भाग है, मित्रभेद ।

आचार्य विष्णुशर्मा ने राजा के पुत्रो को, शिक्षा देने और उन्हें समझदार इंसान बनाने के लिए पंचतंत्र की रचना की थी। आचार्य विष्णुशर्मा उन राजकुमारों को, पंचतंत्र के पहले तंत्र की कहानियां सुनाते है; जिसका नाम है, मित्रभेद। इस तंत्र में दोस्ती,विश्वास,और धोखे पर आधारित कई शिक्षाप्रद कहानियाँ शामिल हैं, जो हमें जीवन में सही फैसले लेने की प्रेरणा देती हैं। इस तन्त्र में अनेक प्रकार की शिक्षाएं दी गई है; जैसे कि धैर्य को बनाये रखने से हम किसी भी कठिन से कठिन परिस्थिति का सामना कर सकते है, और इसलिए कार्य के बिगड़ जाने पर भी धैर्य का त्याग नहीं करना चाहिए। दूसरी बात कि हमें अपने दोस्तों के इरादों को भी समझना चाहिए और सोच-समझकर ही किसी से दोस्ती करनी चाहिए। मित्रभेद नाम का यह तंत्र हमें सावधान रहने और सही मित्र चुनने की सलाह भी देता है।

तो चलिए सुनते है, मित्रभेद नाम के पहले भाग की दूसरी कहानी। जिसका शीर्षक है, “शरारती बंदर और उसकी कटी पूंछ”

एक समय की बात है, एक छोटे से गाँव के पास, एक बहुत बडे भव्य मंदिर का निर्माण हो रहा था। यह मंदिर गाँव के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान था, जहाँ वे पूजा-पाठ करने जाते थे। मंदिर के निर्माण का काम बहुत तेजी से चल रहा था, और इस काम में कई मज़दूर जुटे हुए थे। गाँव के लोग बहुत खुश थे, क्योंकि वे जानते थे कि यह मंदिर उनकी आस्था और संस्कृति का प्रतीक होगा।

मंदिर के चारों ओर लकड़ी के लठ्ठे, और कई सारे औज़ार बिखरे हुए थे। यहाँ काम करने वाले मज़दूर सुबह से लेकर शाम तक मेहनत करते थे। गर्मी की धूप में भी वे अपने काम में लगे रहते थे। सुबह से शाम तक जैसे-जैसे दिन बीतता, उन्हें अपनी मेहनत का फल दिखने लगता था। लेकिन जब दोपहर का भोजन करने का समय आता, तो सभी मज़दूर अपने-अपने काम को छोड़कर घर चले जाते थे। यह समय था कुछ सुकून का, जब कोई काम नहीं होता था, और सन्नाटा छा जाता था।

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जब मज़दूर घर चले जाते थे, तब बंदरों का एक बड़ा झुण्ड वहाँ आ जाता था। हमेशा से, बंदर अपनी शैतानियों और मस्ती के लिए जाने जाते है। उस झुण्ड के सभी बंदर पेड़ों पर उछल-कूद करते रहते थे। उनके झुण्ड में एक शरारती बंदर भी था, जिसे हमेशा किसी न किसी चीज़ से छेड़छाड़ करने की आदत थी। उसके साथी बंदरों ने उसे कई बार समझाया, लेकिन वह किसी की भी बात नहीं मानता, और शरारत करने से चुकता नहीं था।

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रोज़ की तरह, एक दिन दोपहर के समय बंदरो का वह झुण्ड वहा आया। काफी देर मौज-मस्ती करने के बाद जब सारे बन्दर वहा से जाने लगे, तब वह शरारती बन्दर वही रुक गया। जब बाकी सभी बंदर पेड़ों पर चले गए, तब वह शैतान बंदर अकेला वहा रह गया। उसने देखा कि, वहाँ एक आधा चिरा हुआ लठ्ठा पड़ा है। उसकी उत्सुकता जागी। उसने लठ्ठे के बीच में फंसे एक कीले को देखा और सोचा, "अगर मैं इसे निकाल दूँ तो क्या होगा?" उसके मन में कई सवाल उठने लगे। उसे यह जानने की इच्छा हुई कि, यदि वह इस कीले को बाहर निकालता है, तो इस आधे चिरे लकड़ी के लट्ठे में क्या बदलाव आएगा।

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बंदर ने पास पड़ी एक आरी उठाई। वह उसे लठ्ठे पर रगड़ने लगा। आरी की किर्रर्र-किर्रर्र की आवाज़ सुनकर वह चिढ़ गया और आरी को फेंक दिया। अब उसकी एकमात्र चिंता वह कीला था, जो लकड़ी के लट्ठे के बीच में फसा था। वह जोर लगाने लगा। जैसे-जैसे उसने कीले को खींचा, वह थोड़ा-थोड़ा हिलने लगा। बंदर को यह देखकर बहुत खुशी हुई। बंदर इस बात पर खुश हुआ, कि वह कीले को आसानी से खींच सकता है। लेकिन उसकी लापरवाही के कारण, उसकी पूंछ लठ्ठे के बीच आ गई थी। जैसे ही उसने एक जोरदार झटका मारा, लठ्ठे के दो हिस्से आपस में जुड़ गए और बन्दर की पूंछ उन दो हिस्सों के बीच में दब गई। वह चिल्लाने लगा और दर्द से कराहने लगा।

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उसी समय, सारे मज़दूर वापस लौट आए। उन्होंने वहाँ कुछ हलचल महसूस की । जब उन्होंने देखा कि बंदर की पूंछ लठ्ठे में फंसी हुई है, तो वे हैरान रह गए। बंदर ने उन्हें देखकर भागने की कोशिश की, लेकिन उसकी पूंछ लठ्ठे में फंसी हुई थी। वह जोर लगाता रहा, लेकिन उसकी पूंछ वहीं फंसी रही। बंदर, अपनी पूंछ को लठ्ठे से निकालने की कोशिश में चिल्लाता हुआ इधर-उधर भागने लगा। उसे ऐसी हालत में देखकर, मज़दूर भी उसकी मदद के लिए दौड़े। इतने सारे लोगो को अपनी ओर आता देखकर, वह बन्दर बहुत डर गया। उसे लगा की वे सारे लोग, उसे मारने या नुकसान पहुचाने के लिए उसकी ओर आ रहे है। डर के मारे, उसने बिना कुछ सोचे-समझे लकड़ी के लट्ठे पर एक जोरदार झटका मारा, जिससे उसकी पूंछ, बीच में से कट गई।

बंदर अपनी कटी हुई पूंछ के साथ चिल्लाते हुए वहाँ से भाग गया। उसकी यह हालत देखकर सभी मज़दूर धीरे धीरे मुस्कुराने लगे। इस घटना ने उन्हें यह सिखाया कि बिना सोचे-समझे कोई काम करना कितना खतरनाक हो सकता है। जब बंदर अपनी कटी हुई पूंछ के साथ भाग रहा था, तो उसने सोचा, "अगर मैंने उस कीले को नहीं छेड़ा होता, तो शायद मेरी पूंछ आज सुरक्षित होती।" उसे यह एहसास हुआ कि शरारतें कभी-कभी बहुत महँगी पड़ सकती हैं।

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इस कहानी से हमें यह महत्वपूर्ण सबक मिलता है कि जिज्ञासा और शरारतें हमें परेशानी में भी डाल सकती हैं। कभी-कभी, बिना सोचे-समझे काम करने से हमें नुकसान उठाना पड़ सकता है। हमें अपने कार्यों के परिणामों के बारे में सोचना चाहिए। शैतानी और जिज्ञासा के चलते जो नुकसान होता है, उसे समझना, और उससे सीखना हमारे लिए बहुत ज़रूरी है।
इसी के साथ, पंचतंत्र के पहले तंत्र “मित्रभेद” की दूसरी कहानी “शरारती बंदर और उसकी कटी पूंछ” यही पर समाप्त होती है।