शोक से मुक्ति Freedom from grief

in #partiko6 years ago (edited)


परम् पूज्य स्वामी रामसुखदासजी महाराज के गीता दर्पण से साभार-

मोह के कारण ही मनुष्य 'मैं क्या करूँ ओर क्या न करूं' - इस दुविधा में फंसकर कर्तव्य-च्युत हो जाता हैं, ओर वही उसके शोक का कारण होता हैं।
यदि मनुष्य मोह के वशीभूत न हो तो वह कभी कर्तव्य च्युत नही होगा तो उसके शोक के कारण नही रहेंगे अर्थात वो शोक से मुक्त हो जाएगा।
भगवान, धर्म, परलोक, आदि पर श्रद्धा रखने वाले मनुष्य के भीतर प्रायः ये दुविधा रहती हैं, कि वो क्या करे और क्या नही करे।
उसके संसय ये होता हैं, कि वो लौकिक कर्तव्यों को वरीयता देवे तो आध्यात्मिक उन्नति से वंचित हो जाएगा और परमार्थ में लगकर आध्यात्मिक उन्नत्ति को वरीयता देवे तो, लौकिक कर्तव्यों का भली प्रकार निर्वहन नही कर पायेगा।
मद्भगवद गीता के पहले अध्याय में अर्जुन के मन मे यही द्वंद चल रहा था, तभी अर्जुन का संसय मिटाने के लिए भगवान श्री कृष्ण नें उसको कल्याणकारी उपदेश दिया।
भगवान श्री कृष्ण गीतोपदेश में अर्जुन को समझाते हैं, कि संसय के समय मनुष्य को अपने विवेक को महत्व देना चाहिए। उसको इस बात का दृढ़ निश्चय कर दोनों में से किसी एक उपाय को चुन कर उस राह पर बढ़ने का दृढ़ निश्चय कर लेना चाहिए, जिससे उसके सभी शोक औऱ चिंताएं स्वतः समाप्त हो जाएगी।
प्रकृति के इस कटु सत्य को स्वीकारना ही शोक/चिंता का निवारण है, कि जितने शरीर दिखाई दे रहे हैं, उन सबको एक दिन नष्ट होना ही हैं। मरता सिर्फ शरीर है , इसमे रहनेवाला (आत्मा ) कभी नही मरता।
जिस प्रकार शरीर बाल्यावस्था से युवा और युवा से वृद्धावस्था धारण करता हैं, ठीक उसी प्रकार इस शरीर में रहनेवाला (आत्मा) एक शरीर को छोड़कर दूसरा शरीर धारण कर लेता हैं।
मनुष्य के शोक के कारण- जन्म, मृत्यु, बीमारी, आर्थिक-सामाजिक स्थिति आदि हैं। जो कि अज्ञानता के कारण हैं।
वास्तविक ज्ञानवान मनुष्य जानता हैं, कि ये सब परिस्तिथियां पीछे नही थी, आगे भी नही रहनेवाली हैं, और वर्तमान प्रतिक्षण बदल रहा हैं।
अर्थात अनुकूल प्रतिकूल परिस्तिथियां पिछले शरीर मे ये आत्मा थी, तब ऐसी नही थी, अगले शरीर मे ये आत्मा रहेगी तब कुछ अलग प्रकार की होगी।
इस प्रकार स्पष्ट विवेक हो जाये, तो सारी चिंताएं स्वतः समाप्त हो जाएगी।
प्रकृति प्रदत्त जो कर्तव्य- कर्म प्राप्त हो जाये उसका पालन, बिना फल प्राप्ति की इच्छा से करते जाओ। सम (निर्विकार) भाव सभी शोक/ चिंताओं का निराकरण हैं।

Due to the delusion, man 'what should I do and not do'? In this dilemma, the duty is lost, and that is the reason for his condolence.
If a man is not subjugated by temptation, then he will never forget duty and will not be due to his grief, that is, he will be free from grief.
There is often a dilemma inside a person who believes in God, religion, the world, etc., what he does and what he does not do.
His senses are that, if he prefers the cosmic duties, he will be deprived of spiritual advancement and if he is given priority in spiritual life, then he will not be able to discharge the good deeds of the temporal duties.
In the first chapter of the Bhagavad Gita, this fight was going on in Arjuna's mind, only then Lord Shri Krishna gave him welfare preaching to eradicate Arjun's throne.
Lord Shri Krishna explains to Arjuna in Geetapadesh, that at the time of Sansaya, man should give importance to his discretion. He should make a firm determination to decide on this matter by choosing one of the two solutions and moving on that path, which will end all his grief and anxiety.
Accepting this bitter truth of nature is the prevention of mourning / anxiety, that all the bodies that are visible, all must be destroyed one day. Dying is the only body, the soul in it (the soul) never dies.
Just as the body takes old age and youth from old age, so in this way the soul (the soul) in the body, leaving one body, takes another body.
Due to the bereavement of man - birth, death, disease, economic-social status etc. Which are due to ignorance.
The real knowledgeable man knows that all these situations were not behind, they are not going to happen even further, and the current trends are changing.
That is, favorable adverse situations were the soul in the previous body, then it was not so, in the next body it will remain soul then there will be some different types.
If there is clear discrimination in this way, then all concerns will end automatically.
Do the duty given to you by nature, follow the adherence to it, without any desire to attain it. Sam (poker) is the solution of all grief / worries.
Your views are invited to this ideology.

इस विचारधारा पर आपकी राय सादर आमंत्रित हैं।

आपका- indianculture1

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