बजरंग बाण का पाठ;- ,बजरंग बाण ( दिव्यास्त्र )बजरंग बाण ( दिव्यास्त्र )
सुख और दुख कर्माणाधिन प्रारब्ध है , पर हर समस्याओं का निवारण करना और परिवार की हरेक सुखाकारी केलिए यत्नशील रहना वो पुरुषार्थ है । समस्याएं अलग अलग प्रकार की होती है । आरोग्य , धन धान्य , विवाह संबंध , कुटुंब कलह , भुत-प्रेत बाधा, तांत्रिक अभिचार , देवदोष ,पितृदोष, भूमिदोष,बेरोजगार ओर इस विविध समस्याओं के निवारण केलिए ज्योतिष मार्गदर्शन , पूजा पाठ , तंत्र मंत्र क्रिया से लेकर अनेक उपाय किये हो फिर भी परिणाम नही मिलता हो इसका कारण है उन प्रबल शक्तिओ के सामने हमारा भजन भक्ति निर्बल हो । क्योंकि आजकल हरेक व्यक्ति स्वयम कुछ करने की बजाय कोई सिद्ध , कोई साधक जाड़फूंक करदे ओर हमे अच्छा होजाये ऐसे ठिकाने , साधको को ढूंढते रहते है । मुफ्त का गोपीचंदन लगाकर खुद भक्त होनेके कपट कभी फलदायी नही होता। नकारात्मक शक्ति को हटाना है तो पुर्ण श्रद्धा के साथ सकारात्मक शक्तिओ का यजन स्वयं करना चाहि
आज के कलिकाल मे पृथ्वी पर महारुद्र हनुमान , भैरव ओर महाकाली जाग्रत शक्ति है । अपने अपने कुलगोत्र देवी देवता की पूजा के साथ हनुमानजी महाराज की भक्ति शीघ्र फलदायी होती है ।
नित्य स्नान शुद्धिकर आसन पर बैठकर हनुमानजी के नाम एक दिया लगाए । प्रथम शिव रक्षा स्तोत्र ओर राम रक्षा स्तोत्र का एक एक पाठ कीजिये । उसके बाद 11 पाठ बजरंग बाण करिए ।
शिव रक्षा स्तोत्र:-
विनियोग;-
अस्य श्रीशिवरक्षा-स्तोत्र-मन्त्रस्य याज्ञवल्क्य ऋषिः,
श्रीसदाशिवो देवता, अनुष्टुप् छन्दः,
श्रीसदाशिव-प्रीत्यर्थे शिवरक्षा-स्तोत्र-जपे विनियोगः ॥
शिवरक्षा स्तोत्र :-
चरितं देवदेवस्य महादेवस्य पावनम् ।
अपारं परमोदारं चतुर्वर्गस्य साधनम् ॥ (१)
गौरी-विनायकोपेतं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रकम् ।
शिवं ध्यात्वा दशभुजं शिवरक्षां पठेन्नरः ॥ (२)
गङ्गाधरः शिरः पातु भालमर्द्धेन्दु-शेखरः ।
नयने मदन-ध्वंसी कर्णौ सर्प-विभूषणः ॥ (३)
घ्राणं पातु पुराराति-र्मुखं पातु जगत्पतिः ।
जिह्वां वागीश्वरः पातु कन्धरां शिति-कन्धरः ॥ (४)
श्रीकण्ठः पातु मे कण्ठं स्कन्धौ विश्व-धुरन्धरः ।
भुजौ भूभार-संहर्त्ता करौ पातु पिनाकधृक् ॥ (५)
हृदयं शङ्करः पातु जठरं गिरिजापतिः ।
नाभिं मृत्युञ्जयः पातु कटी व्याघ्रजिनाम्बरः ॥ (६)
जङ्घे पातु जगत्कर्त्ता गुल्फौ पातु गणाधिपः ।
चरणौ करुणासिन्धुः सर्वाङ्गानि सदाशिवः ॥ (८)
एतां शिव-बलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत् ।
स भुक्त्वा सकलान् कामान् शिव-सायुज्यमाप्नुयात् ॥ (९)
ग्रह-भूत-पिशाचाद्यास्त्रैलोक्ये विचरन्ति ये ।
दूरादाशु पलायन्ते शिव-नामाभिरक्षणात् ॥ (१०)
अभयङ्कर-नामेदं कवचं पार्वतीपतेः ।
भक्त्या बिभर्त्ति यः कण्ठे तस्य वश्यं जगत् त्रयम् ॥ (११)
इमां नारायणः स्वप्ने शिवरक्षां यथादिशत् ।
प्रातरुत्थाय योगीन्द्रो याज्ञवल्क्यस्तथालिखत् ॥ (१२)