लगन में मगन
शहद की मक्खी एक फूल से उड़कर दूसरे फूल पर जा बैठती है। इस प्रकार वह भिन्न ....भिन्न .....भिन्न करती रहती है और अलग अलग रस लेती रहती है। परन्तु जब वह शहद के छत्ते पर जाकर बैठती है तब उसकी भिन्न ....भिन्न .... ख़त्म हो जाती है। ठीक इसी प्रकार मनुष्य भी जब तक संसार में इन्द्रियों के विषय का रस लेने में लगा रहता है तब तक उसकी भिन्न ...भिन्न ...समाप्त नहीं होती जब तक वह एक के बाद दूसरे विषय के पीछे पड़ा रहता है तब तक उसका मन उड़ता रहता है। जब उसका मन परमपिता परमात्मा शिव की , जोकि मधु से भी अतिशय मधुर है , पर जा टिकता है , तब उसकी भिन्न ...भिन्न ... समाप्त हो जाती है। तब विषय पदार्थों के पीछे उसका मन तन्मय हो जाता है। गोया तब उसका भटकना बंद हो जाता है और सर्वोच्च अनुभूति में ही टिक जाता है।
आज की काफी छोटी पोस्ट थी , इसको पढ़ने के लिए धन्यवाद्
@himanshurajoria
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बहुत ही सुंदर उदाहरण से आपने परमात्मा में मन लगाने को समझाया है . यह पोस्ट छोटी जरुर है पर बहुत ही गहरा सन्देश देती है.
जी , धन्यवाद। ..