तीर्थंकर खीर - एक प्राचीन पकवान
दोस्तों!
आप जानते होंगे कि मैं पाक कला में निपुण नहीं हूँ और नाना प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजनों या उन्हें बनाने की विधियां मैं आमतौर पर पोस्ट नहीं करता हूँ। लेकिन आज जन्माष्टमी के पर्व पर मैंने सोचा कि कुछ विशेष होना चाहिए। अब आप सोच रहे होंगे कि एक निरवद्य (vegan) जीवनशैली अपनाने वाला व्यक्ति जन्माष्टमी पर आपको कैसी व्यंजन विधि बताएगा। लेकिन आज यह हमने अपनी सीमित सोच बना ली है कि बिना किसी डेयरी उत्पाद के कोई पकवान बनाना नामुमकीन है। इसलिए मैं आज आपसे आधुनिक संस्कृति से परे एक एतिहासिक व्यंजन की विधि साझा कर रहा हूँ।
बेडरूम में विश्व-चैम्पियनशिप
बचपन में मुझे शतरंज खेलने का बड़ा शौक था।उन दिनों मोबाइल-इंटरनेट इस दुनिया में अभी आये नहीं थे। टी.वी. या फोन भी मेरे पास नहीं था। लेकिन शतरंज की विश्व-चैम्पियनशिप चल रही थी और उसके फाइनल में भारत के ही विश्वनाथन आनंद खेल रहे थे। जाहिर है कि मैं कितना उत्सुक रहा होऊंगा। हर खेल के एक दिन बाद अखबारों के माध्यम से परिणाम पता चल पाता था और उस बारे में कोई विशेष विवरण भी नहीं छपता था। लेकिन मैंने अपने पडौस के एक पुस्तकालय के सारे अखबार खंगालना शुरू कर दिया। मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा जब मुझे एक ऐसा अखबार मिला जिसमें न केवल खेल का विस्तृत विवरण बल्कि हर खेल की प्रत्येक चाल भी लिखी हुई आती थी। फिर क्या था, मैं हर खेल की सारी चालें नोट करके ले आता था। और घर आ कर सभी को बताता कि आज मेरे कमरे में शतरंज की विश्व-चैम्पियनशिप का रिप्ले होने वाला है ...मेरी अपनी ही शतरंज की बिसात पर! और मैं नियत समय पर एक-एक कर आनंद जी एवं उनके प्रतिद्वंदी की सारी चालें पुस्तकालय से लाई गई पर्ची के मुताबिक हुबहू अपनी बिसात पर चलता था। अपने कमरे में, अपनी ही बिसात पर विश्व-स्तर का खेल, जो कि एक दिन पहले ही विश्व-चैम्पियनशिप में खेला गया था; देखकर मैं बड़ा रोमांचित हो उठता था।
आप सोच रहे होंगे कि मैं आपको ये क्या दास्ताँ सुनाने लग गया। दरअसल, आज मुझे यह बात इसलिए याद हो आई क्योंकि जो व्यंजन मैंने बनाकर खाया, उससे मुझे ऐसी ही कुछ अनुभूति हुई। इस व्यंजन को "तीर्थंकर खीर" कहते हैं। इसका महात्म्य समझने के लिए मैं थोड़ा सा इस पर भी विस्तार करता हूँ।
तीर्थंकर बोले तो कौन?
जैन धर्म की स्थापना और प्रवर्तन करने वाले 24 तीर्थंकर हुए हैं। उन्होंने आत्म-साधना कर केवल्य ज्ञान की प्राप्ति करी और तत्पश्चात उसे जन-जन के कल्याण के लिए उसे प्रसारित किया। जैन शास्त्रानुसार उनके 24 में से 23 तीर्थंकरों ने लंबे तप के बाद जब पारणा किया (पहला निवाला लिया) तो वो क्षीर (खीर) का था। इसमें केवल प्रथम तीर्थंकर एक अपवाद है जिन्होंने अपना पारणा गन्ने के रस से किया था। हालाँकि इन घटनाओं का विशेष महत्व नहीं था किंतु मुश्किल तब खड़ी हो गई जब इस युग के जैन अनुयायियों ने इस तथ्य को अपने दुग्ध-उत्पादों के बढ़ते उपभोग की पैरवी करने के लिए ढाल बना दिया। अतः आज यहाँ, मैं इसकी वास्तविकता पर थोड़ा प्रकाश डालने का प्रयास करूंगा।
खीर क्या होती है?
आप सभी ने अन्न की खीर को अनेक प्रकार से बना कर खाया होगा। इन सब में अधिक प्रचलित घटक हैं:
चावल, चीनी और दूध।
(गेंहूँ से बनी खीर को खीर न कह खीच कह दिया जाता है।)
अब खीर के इन तीन मुख्य घटकों में से सबसे प्रधान घटक है - चावल। बिना इसके खीर नहीं बनेगी।
चीनी से भी भला कोई खीर बनती है?
आज जो हम पकवानों को मीठा करने के लिए सफ़ेद परिष्कृत चीनी काम में लेते हैं उसका आविष्कार 1813 ई. में ही हुआ था, स्टीम इंजिन के आविष्कार के बाद। गन्ने के रस से शक्कर बनाने की विधि भी ईसा से पाँच शताब्दी पूर्व के पहले तक विकसित नहीं हो पाई थी।
तो फिर प्राचीनकाल में बनी खीर को मीठा कैसे किया जाता होगा?
प्रथम तीर्थंकर के पारणे में गन्ने के रस का प्रयोग हमें बताता है कि उस समय गन्ने की फसल और उसका रस उपलब्ध था। अतः हमें खीर को मीठा करने के लिए उसे किसी पशु से प्राप्त दूध में उबालकर चीनी मिलाने की जरूरत नहीं थी। हमें तो चावल को मीठा करने के लिए पानी के स्थान पर गन्ने के रस में चावल पकाने से ही काम हो जाएगा। और यदि रस थोड़ा अधिक होगा तो वही खीर कहलायेगा। अतः इस प्रकार बनी खीर जिसे तीर्थंकरों ने अपने पारणे में इस्तेमाल किया, इसे तीर्थंकर खीर का नाम दिया गया।
तीर्थंकर खीर का मजा
अतः मैंने हजारों वर्ष पूर्व बने इस व्यंजन को जो कि हमारी संस्कृति से लगभग विलुप्त ही हो गया है, उसे बनाने की सोची। यहाँ बरसात के मौसम में गन्ना अच्छा नहीं होता है। लेकिन मेरे घर के पास ही एक विक्रेता नासिक से गन्ने मंगवा कर उसका रस बेच रहा था जिसे मैं खुशी-खुशी ले आया।
बस फिर क्या था, भिगोये हुए चावलों को उबाल दिया इसमें।
भूख भी बड़े जोरों की लग आई थी, इसलिए बिना कुछ और मिश्रित किये टूट पड़ा मैं उस पर। वाह क्या स्वादिष्ट थी। एक बड़ा कटोरा लिया और डकार गया और शीघ्र ही दूसरा भर लाया।
मेरे जीवन में यह पहला अवसर था जब मुझे तीर्थंकर खीर खाने को मिल रही थी। तीर्थंकर तो मैं बनने से रहा लेकिन इस प्राचीनतम पकवान का तो लुत्फ़ उठा ही सकता हूँ न! 😉
तो फिर क्या था, इसका पूर्ण आनंद लिया गया। गर्मागर्म तीर्थंकर खीर खाने के उपरांत थोड़ी मैंने फ्रीज में ठंडी होने के लिए रख दी। अब चाय के समय भी शीत-खीर का लुत्फ़ उठाया गया। इसमें मैंने काजू-किशमिश और इलायची का पाउडर कूट कर मिला दिया और कुछ खोपरे के टुकड़े भी काट कर डाल दिए। वाह! अब तो मैं आपसे क्या कहूँ! आप स्वयं ही आजमाकर देखें इस आसानी से बनने वाले प्राचीन काल के पकवान को जिसे ज्ञानियों और तीर्थंकरों ने अपना प्रथम आहार बनाया था।
मेरे साथ इस आनंद यात्रा में शामिल होने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद!
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर आपको मेरी शुभकामनायें!
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Enjoy your day and stay creative!
Keep Steeming on!! <3
मुझे लगता है कि मैं जल्द ही खीर को बनाकर खाऊंगा. आपकी पोस्ट पढ़कर एक बार तो इसे खाने के इच्छा हो ही गई है. फिर पसंद आई तो और बनाएगे.
आपकी अति सुंदर व स्वादिष्ट पोस्ट के लिए शुक्रिया.
और नाम के तो क्या कहने
तीर्थंकर खीर
मजेदार.
जरूर! स्वयं भी खाएं और औरों को भी खिलाएं (यानि कि मुझे भी 😉)
अनुमोदन के लिए आभार!
सही में पोस्ट का लेखन और बनाने की विधि और समझाने के तरीके से खाने की प्रबल इच्छा हो गई है. अब तो ये तीर्थंकर खीर खानी ही पड़ेगी.
क्या बताऊ कहने के लिए शब्द नहीं है, आप इसी से समझो की मैंने ये पोस्ट facebook पर भी share कर दी है. अति उत्तम.
गजब!!! सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!
बचपन याद दिला दिया आपने. बहुत छोटा था तब इस खीर को शोक से खाया करता था लेकिन आपकी इस खीर को देखने के बाद एक बार फिर से बचपन को जीने का दिल कर आया.
Delicious food of Indian traditions and festivals.
मैया मोरी मैं नही माखन खायो
भगवान कृष्ण आपकी हर मनोकामना पूरी करें
आपको और आपके परिवार को जन्माष्टमी की ढेर सारी शुभकामनाएं
बहुत खूब! बहुत ही गज़ब का आसन और सात्विक पकवान बनाया है। अब तो इसे बना कर खाना ही पड़ेगा । आज खीर का असली मतलब समझ आया। बहुत बहुत धन्यवाद!
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इस खीर को बनाने की विधि तो वाकई बहुत सरल है मित्र ,मैं जरूर try करना चाहूंगा