RE: #5.3 - If you are well settled in your life, you are insulting God !! (Original Hindi Poetry)
शानदार अभिव्यक्ति और दमदार विचार! आम आदमी की जीवन के प्रति सोच पर अच्छा प्रहार है.
ये हमारे समाज की स्थापित मनोदशा है कि वे जीवन में स्थिरता और सुरक्षा को अहम् मानते हैं, इस बात से अनभिज्ञ कि ठहराव ही तो मौत की निशानी है. जीवन तो चलने का ही नाम है. ठहरे हुए पानी पर भी काई जम जाती है फिर जीवन तो हर क्षण चलायमान होने को ही कहते हैं.
परंतु इसमें आम आदमी का इतना दोष नहीं है. हमारे समाज ने कई तरीके ऐसे गठित कर दिए हैं जो जीवन में स्थायित्व को अधिक तवज्जों देते हैं जैसे कि पेंशन योजनायें, बीमा और यहाँ तक कि पुनर्बीमा (re-insurance) जैसे सुरक्षा कवच ईजाद कर दिए हैं जो व्यक्ति को जीवन मात्र से वंचित करने का प्रयास करते हैं. ये सब अनिश्चितताओं से डराते हैं जब कि जीवन का मूल ही अनिश्चितता है!
लेकिन बेचारे जानवरों से क्यों तुलना करते हो? वे तो मानव से अधिक जीवंत हैं. वे मानव की भांति "settle" नहीं होते न ही भविष्य की सुरक्षा के लिए कोई परिग्रह करने का उपाय करते हैं. वे तो हर नये क्षण को पूर्णता से जीते हैं.
जानवरों को हेय दृष्टि से देखने के बजाय मानव को उनसे सीखना चाहिए!
This is impressive stuff.
Hmm. Thank you for your descriptive comment as always. You are right about everything. I should not drag animals into it. I am myself an animal lover. Thank you for opening another gate of realization for me. :)