contemplation चिन्तन ~ 1
Nature returns to us in response to the action taken by us. That is, according to the actions that we have done, we get the result. According to the kind of thinking we put in, the direction and condition of our life was determined by nature.
If we were to think positively and to help, we would get positive results in our lives and whenever needed help in life, there was help available immediately.
If our thinking was negative and we were always engaged in finding the weaknesses of others, if we needed help from others instead of helping others, then its response would be the same. That is, people's thinking will be negative for us, people will pay more attention to our shortcomings than our strengths, and no one will stand with us when we need them.
Life is just a resonance ki of the deeds done by us.
Today, in the global scenario, we can see it easily. The followers of religion who are always ready to help others, believe in doing the good of the creatures towards humanity, they are happy, the followers of their opinion are increasing, the entire human world is ready to help those godless people.
On the contrary, those who destroy blood, use their power to make their rule globally, they leave their own and follow other opinions, most of them are being followed by those who believe in their religion. Their home and city are destroying. The most pathetic condition is of the same religion. Nature's havoc is also the same, where these people are more. Atrocities and atrocities.
The creatures created by Nature are meant to be positive and helpful. If we reverse it, the results will also be reversed. And if we are moving forward than result will be same. And we moving on the right direction, the result will also be correct.
The secret to being happy in life is the same positivity. Positiveness generates positive energy, which provides the right result and peace. In negativity it is reversed.
To be happy, think positively, correct and increase in the right direction.
प्रकृति हमारे द्वारा की गई क्रिया की प्रतिक्रिया स्वरूप हमें लौटाती हैं। अर्थात हमारे द्वारा जो कर्म किये गए, उसी के अनुरूप हमे फल की प्राप्ति होती हैं। हमने जिस प्रकार की सोच रखी, उसी के अनुरूप हमारे जीवन की दिशा व दशा प्रकृति द्वारा निर्धारित की गई।
यदि हमारी सोच सकारात्मक व सहायता करने की रही, तो हमारे जीवन मे हमे सकारात्मक परिणाम ही प्राप्त होंगे और जब भी जीवन में किसी की सहायता की आवश्यकता पड़ी, तुरन्त कोई न कोई सहायता उपलब्ध हो गईं।
यदि हमारी सोच नकारात्मक रही और हम हमेशा दूसरों की कमियां खोजने में लगे रहे, जरूरत होने पर हम दूसरों की सहायता करने की बजाय उससे दूरिया बना ली, तो उसकी प्रतिक्रिया भी वैसी ही होगी। अर्थात लोगो की सोच हमारे प्रति नकारात्मक रहेगी, लोग हमारी खूबियों के बजाय हमारी कमियों पर ज्यादा ध्यान देंगे, और आवश्यकता पड़ने पर कोई भी हमारे साथ खड़ा नही होगा।
जीवन हमारे द्वारा किये गए कर्मो की प्रतिध्वनि मात्र हैं।
आज वैश्विक परिदृश्य में इसको साकार होते हुए हम आसानी से देख सकते हैं। जिस धर्म के अनुयायी सदा दुसरो की सहायता के लिए तत्पर रहते हैं, मानवता का ओर प्राणीमात्र का भला करने में विश्वास करते हैं, वो सुखी हैं, उनके मत के अनुयायी बढ़ रहे हैं, उन धर्मावलम्बियों की सहायता को पूरा मानव जगत तैयार हैं।
इसके विपरीत जो धर्मावलम्बी खून खराबा करते हैं, अपना राज विश्व पर जमाने के लिए ताकत का इस्तेमाल करते है, उनके अपने ही उनको छोड़कर अन्य मतों का अनुसरण करते हैं, सबसे ज्यादा मौते उन्ही के धर्म को मानने वालों की हो रही हैं। उन्ही के घर और शहर उजड़ रहे हैं। सबसे ज्यादा दयनीय दशा उसी धर्मावलम्बियों की हैं। प्रकृति का कहर भी वही ज्यादा हैं, जहां ये लोग ज्यादा हैं। अनीति और अत्याचार करते हैं।
प्राणी मात्र को प्रकृति ने बनाया ही सकारात्मक और सहायक बनने के लिए हैं। यदि हम इसका उल्टा करते हैं, तो परिणाम भी उल्टे ही प्राप्त होंगे। और यदि हम सही दिशा की अग्रसर होंगे तो परिणाम भी सही ही प्राप्त होंगे।
जीवन में सुखी रहने का राज़ ही सकारात्मकता हैं। सकारत्मकता से सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती हैं, जो सही परिणाम और शांति प्रदान करती हैं। नकारात्मकता में इसका उल्टा होता हैं।
सुखी रहने के लिए सकारात्मक सोचें, सही करें और सही दिशा में बढ़े।
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Yours ~ indianculture1
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