RE: क्षमा वीरस्य भूषणम् (अंतिम भाग # २) | Heroes Pride Forgiveness (Final Part # 2)
एक महात्मा रोज़ सुबह नदी के किनारे स्नान करने के लिए जाते थे , एक दिन वह अपने शिष्य के साथ गए , महात्मा जी ने स्नान शुरू किया , स्नान पूरा हो जाने के बाद उन्होंने सूर्य नमस्कार किया , फिर पूजा करने लगे , लेकिन तभी उनकी नजर नदी किनारे नदी में डूबे हुए एक जहरीले बिच्छू पर पड़ी , महात्मा जी तुरंत उठे और उन्होंने उस बिच्छू को नदी से बहार निकाला और फिरसे किनारे पर रख दिया , लेकिन नदी से निकालते वक़्त बिच्छू ने महात्मा को काट लिया , महात्मा जी जोर से चिल्लाये और दर्द से कराहने लगे , लेकिन फिरसे बिच्छू नदी में जा गिरा , महात्मा जी ने फिरसे बिच्छू को नदी में से निकाला और किनारे पर रख दिया , फिरसे बिच्छू ने डंक मारा , ऐसा कई बार हुआ , यह देख उनका शिष्य अचम्भे में पड़ गया , लेकिन एक बार बिच्छू किनारे से दूर चला गया , और उसकी जान बच गयी , तब उनके शिष्य ने महात्मा से पूछा के आपको इसने कई बार काटा , लेकिन फिर भी आपने अपने दर्द की परवाह नहीं की और इसे बचाया , तब महात्मा हस्ते हुए बोले , यह तो बिच्छू है इसका धर्म है के डंक मारना यह तो अपना धर्म निभा रहा था , और मेरा कर्त्तव्य बनता है के मैं इसे बचाऊं , क्यूंकि यह खुद नदी से निकलने में असमर्थ था , इसलिए मैंने भी अपना धर्म निभाया , तब उनके शिष्य ने महात्मा के चरण पकड़ लिए।
महात्मा जी ने बहुत ही सही काम किया.