राजा, मानक और उबले हुए बीज।
एक नवयुवक की कहानी, जो सच्चाई और हिम्मत के बल पर राजा का उत्तराधिकारी बना।
एक राजा बूढ़े हो रहे थे और समय आ गया था कि वह अपना उत्तराधिकारी चुनें। लिहाजा उन्होंने तय किया कि वह एक प्रतियोगिता आयोजित करेंगे और पच्चीस साल से कम उम्र का कोई भी युवक जो प्रतियोगिता जीतेगा, वह उत्तराधिकारी बनेगा।
राज्य के सभी युवक राजमहल में इक्कट्ठा हुए।राजा ने सबको एक-एक बीज दिया और कहा, आप सब यह बीज घर ले जा कर गमले में बो दीजिये, और इसकी खूब सेवा करिये। ठीक एक साल बाद मैं गमले देखूंगा और जिसका भी पौधा मुझे सबसे ज्यादा पसंद आएगा, वही इस राज्य का उत्तराधिकारी होगा।
सभी युवक अपना-अपना बीज लेकर घर लेकर घर चले गए। उसमे एक युवक का नाम था मानक। मानक ने घर जाकर एक छोटे से गमले में बीज बो दिया। वह रोज उसमे पानी डालता, उसे धुप दिखाता। दो हफ्ते बीत गए, लेकिन मानक के बीज में अंकुर नहीं फूटा। जबकि मानक के बीज में अंकुर आ गए थे।
तय दिन सभी युवक अपना-अपना पौधा लेकर राजमहल पहुंचे।मानक के गमले में कुछ भी नहीं निकला, फिर भी मां के कहने पर अपना खाली गमला लेकर वह राजमहल पंहुच गया। जब राजा आये, तो उन्होंने एक-एक कर सभी के गमलों को देखा और उनके सुन्दर पौधों की खूब तारीफ की। जब सारे गमले पुरे हो गए, तो मानक की बारी आई।
मानक बोला, महाराज, आपने जो बीज दिया था, मेने उसकी खूब सेवा की, लेकिन उससे कुछ भी नहीं निकला। राजा ने सबके सामने घोषित किया, आज से मानक ही मेरा उत्तराधिकारी होगा। सभी राजा की तरफ हैरानी से देखने लगे। राजा बोले, मैने जो बीज दिए थे, वे उबले हुए थे। आप् सबने उन बीजो को किन्ही और बीजो से बदल दिया। सिर्फ मानक में वह सच्चाई और हिम्मत थी की उसने मुझसे आकर सच्चाई बता दी।
सच्चाई भले हारती दिखे, पर अंततः वही सफल होती है।
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