साधना में चरित्र का महत्त्व - भाग # १ | Importance of Character in Sadhana (Part # 1)
साधना में चरित्र का महत्त्व - भाग # १ (Importance of Character in Sadhana - Part# 1)
“संसार में संपत्ति का नाश चिन्ता का विषय नहीं, स्वास्थ्य हानि कुछ चिन्तनीय है, किन्तु चरित्रनाश सर्वनाश है ।” अंग्रेजी की इस उक्ति में उपर्युक्त भाव प्रकट किया गया है । पाश्चात्य संस्कृति में भी चरित्र की हानि सबसे बड़ी हानि समझी गई है । इसे अपूरणीय क्षति माना गया है । भारतीय दर्शन, संस्कृति व जीवन धारा तो यम, नियम, योग, तापस व्रत्ति, ब्रह्मचर्यं और सदाचार आदि पर आधारित है । भोग में लिप्त होकर मानव एक ऐसे दल-दल में फंस जाता है जहां से निकलना असम्भव हो जाता है । तृप्ति की मृग-मरीचिका बन जाती है । परिणाम यह होता है कि –
“भोगा ना भुक्ता वयमेव भुक्ता:” अथार्त भोग भोगने के चक्कर में एक दिन हम स्वयं ही भोज्य बनकर जीवन से हाथ धो बैठते हैं । भोग यहीं रह जाते हैं । यह कभी न अन्त होने वाली भूख है और यदि इस भूख की तृप्ति की ओर ही सदा ही प्रयत्नशील रहे तो जीवन-लीला एक दिन समाप्त हो जाएगी । भोगों का अन्त नहीं होगा । भोग यहीं छूट जाएंगे । वे यथावत बने रहेंगे । जीवन में मानव अपना उत्कर्ष नहीं कर पाएगा । इस प्रकार यदि मानव भी मात्र खाना, पीना, सोना आदि ही अपने जीवन का उद्देश्य बनाकर रह जाएगा तो मानव और पशु में कोई अन्तर नहीं रहेगा । क्योंकि मानव जीवन उन्नत जीवन है । इसमें कला, संस्कृति, विज्ञान कर्म आदि अनेक क्षेत्र हैं जो मानव की साधना के सुपरिणाम हैं । सतत् मानव प्रयासों से इनकी गति आगे बढ़ती है और नवीन सम्भावनाएं पैदा होती हैं तथा जीवन धारा निरंतर उन्नति की ओर अग्रसर होती रहती है । भारतीय विचारधारा भोगों से दूर रहकर जीवन को उन्नत बनाने पर बल देती है । इसलिए संयम और चारित्रिक दृढ़ता अनिवार्य मानी गई है ।
वस्तुतः चरित्र में जीवन की समस्त अच्छाईयां सन्निहित हैं किन्तु कामवासना पर नियंत्रण प्रमुख है । काम वृति मानव की मूल प्रवृति है । जीवन में अन्य समस्त वृतियों से यह प्रबलतम है । चरित्र में यही प्रमुख है । इस पर नियन्त्रण कठिन है । ऋषि-मुनियों के सरल जीवन और उच्चादर्शोंमुख सद्वृत्तियों ने इस पर सफल नियंत्रण स्थापित किया । यह एक योग साधना है । कठिन तपस्या है जो कि सबके लिए सुकर नहीं है ।
गृहस्त जीवन में सीमित प्रवाह देकर इसे सबके लिए सरल और सुग्राह्म बना दिया गया । और ‘एक नारी ब्रह्मचारी’ मान लिया गया । अपनी स्त्री के अतिरिक्त अन्यत्र भोग निषिद्ध ही नहीं, पाप मान लिया गया । चारित्रिक कलंक बताया गया है । भोगी मानव समाज में निंदनीय होता है । समाज में उसका सम्मान नहीं होता । सभ्य उसके पास बैठना नहीं चाहता । सभी उससे दूर रहते हैं । वह कभी आदरणीय नहीं हो सकता । रावण ब्राह्मण था । बहुत बड़ा विद्वान था । बहुत ज्ञानी पुरुष था । यहां तक कि राम ने भी अनुज लक्ष्मण से रावण के अन्त समय में उसके पास जाकर उपदेश ग्रहण करने के लिए कहा था । इतना बड़ा विद्वान कि शत्रु राम भी उसकी विद्वता का कायल था, संसार में आदरणीय नहीं हो सका । क्योंकि उसने स्त्री की ओर कुदृष्टि डाली । वह निंदनीय माना गया । आज तक उसे घृणा की दृष्टि से देखा जाता है । उसके समस्त गुणों और विद्वता पर पानी फिर गया । क्योंकि ‘मातृवत परदारेषु’ अर्थात् पर-स्त्री में अपनी माता की-सी दृष्टि रखनी चाहिए ।
The below mentioned translation of post is done by Google language tool. Have a look-
"The destruction of property in the world is not a matter of concern, health loss is something anxiety, but there is an annihilation of omnipresence." The above quoted expression has been revealed in the English language. Even in western culture, loss of character is considered to be the biggest loss. It is considered irreparable damage. Indian philosophy, culture and life stream is based on yama, rule, yoga, tasav vratti, brahmacharyan and virtue etc. Indulging in indulgence, the human gets entangled in a party where it is impossible to get out. Ordinance of fulfillment becomes deer. The result is that -
"Bhoga na Bhakaa Vyamave Bhuktaa:" In reality, one day in the affair of enjoyment, we become self-indwelling and we lose our life. Happiness remains here. This is a never ending hunger, and if you are always trying to satisfy the hunger of hunger, then life will end one day. The end will not end. The pleasure will be missed here. They will remain in the same place. Humans will not be able to flourish in life. In this way, if human beings only eat, drink, sleep, etc. will remain the purpose of their life, there will be no difference between humans and animals. Because human life has advanced life. There are many fields in the fields of art, culture, science, etc., which are the best result of human cultivation. With continuous human efforts, their speed progresses and new possibilities arise and life expectancy continues to progress. Indian ideology emphasizes on staying away from enjoyment and improving life. Therefore patience and character firmness have been considered mandatory.
Virtually all good qualities of life are embodied in character, but control over sex is prominent. The working trend is the basic tendency of the human. This is the most powerful of all other developments in life. This is the key in character. The control over it is difficult. The simple life of the sages and the high-specimenous traditions established successful control over it. This is a yoga practice. There is hard penance which is not easy for everyone.
By making a limited flow of living life, it was made simple and well-meaning for everyone. And 'A woman Brahmachari' assumed. Except for your woman, not only prohibition is prohibited but it is considered as sin. Characteristic stigma has been described. Bhogi is malignant in human society. He is not respected in the society. The civilian does not want to sit near him. All stay away from him. He can never be respecte Ravana was a Brahmin. There was a great scholar. Was a very wise man. Even Ram had asked Anuj Lakshman to go to him at the end of Ravana and take the advice. Such a large scholar that enemy Ram was also convinced of his scholarship, could not be respected in the world. Because he insulted the woman. He was considered condemnable. To this day, he is seen with hatred. Water went on all his qualities and scholarship. Because 'Mother's Paradise' means that the woman should have a vision of her mother.
चरित्र ही मनुष्य का सबसे बड़ा धन है। चरित्र को बचाने के लिए ही प्राचीन समय के महापुरषों ने अपना जीवन बलिदान कर दिया लेकिन आने चरित्र पर आंच नही आने दी । आजकल इसका सबसे जीत जागता उदाहरण है @पद्मावत फ़िल्म।
जैसा कि इस फ़िल्म में दिखाया गया है कि रानी पद्मावती ने अपने चरित्र की रक्षा के लिए अपनी 600 सखियों के साथ आग में कूदकर जौहर कर लिया लेकिन अपने चरित्र को नही जाने दिया।
चरित्रवान व्यक्ति के लिए प्राणों से ज्यादा अपने चरित्र की चिंता होती है।
ऐसे महापुरुषों की तरह ही हमे भी सदैव अपने चरित्र की रक्षा करनी चाहिए।
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https://steemit.com/finger/@ashokroy79/6ugb36
एक विचारक ने कहा है-’जब धन चला गया तो कुछ भी नहीं गया, जब स्वास्थ्य चला गया हो कुछ गया, जब चरित्र चला गया तो सब कुछ गया।’ मानव-जीवन का कुछ सार है तो वह है मनुष्य का चरित्र। चरित्र ही मनुष्य की सर्वोपरि सम्पत्ति है। स्वेट मार्डन ने लिखा है “संसार के व्यक्तियों की आवश्यकता है जो धन के लिए अपने आपको बेचते नहीं, जिनके रोम-रोम में ईमानदारी भरी हुई है, जिनकी अन्तरात्मा दिग्दर्शक यंत्र की सुई के समान एक उज्ज्वल नक्षत्र की ओर देखा करती है जो सत्य को प्रकट करने में क्रूर राक्षस का सामना करने से भी नहीं डरते, जो कठिन कार्यों को देखकर हिचकिचाते नहीं, जो अपने नाम का ढिंढोरा पीटे बिना ही साहसपूर्वक काम करते जाते हैं। मेरी दृष्टि में वे ही चरित्रवान आदमी हैं।”
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nice bhai
character is very important but now a days people will care of wealth ,,,,,
हाँ आप सही कह रहे है परन्तु गलत चीज को ही तो सही करना है. अभी कलयुग में बहुत कुछ गलत हो रहा है, आप और हम सब मिलकर ही उसे सही कर सकते है.
@mehta सही कहा सर आप ने ,चरित्र हीन मनुष्य सम्मान योग्य नहीं होता फिर चाहे हो वो कितना भी धनी हो ,बलवान हो , बुद्धिमान हो या विद्वान् हो। चरित्र खोया तो सब कुछ खोया। -
ईश्वर चित्र में नहीं चरित्र में बसते हैं। अपनी आत्मा को मंदिर मनाओ।
आप का धन्यवाद इतने अच्छे विचारे हमारे साथ बाँटने के लिए।
very nice post. Sab log in baato ko samajh jaayein, to apradho mein kitni kami aa jaaye. Isi tarah ki posts aap aage bhi karte rahein.. God bless you. @mehta
यह ज़िन्दगी बहुत छोटी है , इस ज़िन्दगी में भी इंसान अपने मार्ग से भटक जाते हैं और गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं ,इस छोटी सी ज़िन्दगी में भी इंसान को बताना पड़ता है की किस रास्ते पर चलना है।
@mehta “संसार में संपत्ति का नाश चिन्ता का विषय नहीं, स्वास्थ्य हानि कुछ चिन्तनीय है, किन्तु चरित्रनाश सर्वनाश है ।” बिल्कुल सही, ये बहुत ही पुराणी कहावत है और बिलकुल सत्य है !
सहि बात है।आदमी विद्वान होते हुए भी अगर भोगी है तो संसार में उसका सम्मान नही होता।रामजीकी तो बहुत दूर की बात है पर आसाराम तो हमारे सामने है।
@mehta
हमारी बुद्धिमत्ता का अंत स्वतंत्रता है,
संस्कृति का अंत पूर्णता है,
ज्ञान का अंत प्रेम है
और शिक्षा का अंत चरित्र है..
चरित्र निर्माण के तीन आधार स्तम्भ है,
अधिक निरीक्षण करना,
अधिक अनुभव करना एवं अधिक अध्ययन करना.
Ha sahi bola.... Character is very important in human life. Sandip Mahaswari sir that's why give his classes for free. Thanx for writing this beautiful article, this is very helpful for our youth.