पंचतंत्र की कहानियो की शुरुआतsteemCreated with Sketch.

in #panchatantralast month

पंचतंत्र का परिचय

8.png

पंचतंत्र, एक प्रसिद्ध कहानी संग्रह है, जिसे मशहूर भारतीय, संस्कृत के लेखक, आचार्य विष्णु शर्मा ने लिखा है। इसका नाम 'पंचतंत्र' इसलिए रखा गया है क्योंकि इसमें पांच तंत्र या अध्याय हैं। इसका मुख्य उद्देश्य बच्चों को सरल और रोचक कहानियों के जरिए, राजनीति और जीवन की व्यवहारिकता सिखाना है। पंचतंत्र की कहानियाँ बहुत ही जीवंत हैं, और ये न केवल जीवन जीने के तरीके सिखाती हैं, बल्कि नेतृत्व क्षमता भी विकसित करने में मदद करती हैं। बच्चे से लेकर बड़े तक, सभी को इन कहानियों में दिलचस्पी होती है।
कहानियों का मानव जीवन में बहुत महत्व है। बच्चों में कहानी सुनने या पढ़ने की रुचि हमेशा से रही है। जब कहानी में जिज्ञासा और उत्सुकता होती है, तो वह और भी आकर्षक बन जाती है। एक अच्छी कहानी वो होती है जिसे बार-बार पढ़ने का मन करे। बच्चों का मन बहुत कोमल होता है, और अगर उन्हें अच्छी किताबें दी जाएं, तो वे जीवनभर उनमे लिखी बातो और कहानियों को याद रखते हैं। पंचतंत्र की हर एक कहानी में कोई न कोई शिक्षा जरूर छिपी होती है।
संस्कृत नीतिकथाओं में पंचतंत्र का पहला स्थान माना जाता है। पंचतंत्र की कहानियाँ मनोविज्ञान, व्यवहारिकता और राजकाज के सिद्धांतों से परिचित कराती हैं। इनमें कई बार पशु-पक्षियों को पात्र बनाया गया है, और उनके द्वारा कई शिक्षाप्रद बातें कहलवाने की कोशिश की गई है। चाहे जैसी भी समस्या हो, इस पुस्तक के पन्ने पलटने पर, आपको कुछ न कुछ ऐसा जरूर मिलेगा जो आपकी मदद कर सकता है, और आपको तनाव से राहत दिला सकता है।

पंचतंत्र की कहानियो की शुरुआत

16.png

पंचतंत्र के विषय में, महिलारोप्य के राजा अमरशक्ति की कहानी बताई जाती है। जिसमें यह बताया गया है कि वे अपने मूर्ख पुत्रों के कारण बहुत चिन्तित थे, और इसलिए वे विष्णुशर्मा नामक विद्वान् को बुलाकर, उन्हें अपने तीनो मुर्ख पुत्रो को शिक्षित करने के लिए सौंप देते है। विष्णुशर्मा भी उन्हें केवल छह महीनो में ही, कथाओं और कहानियों के माध्यम से सुशिक्षित करने में सफल होते हैं। आचार्य विष्णुशर्मा और राजा अमरशक्ति की यह कहानी कुछ इस प्रकार हैं।

दक्षिण भारत, के एक नगर, महिलारोप्य में राजा अमर शक्ति शासन करते थे। राजा अमर शक्ति एक बहुत ही पराक्रमी और बुद्धिमान शासक थे, लेकिन उनके तीनो पुत्र, बहुशक्ति, उग्रशक्ति, और अनंतशक्ति, बहुत ही मूर्ख और अज्ञानी थे। राजा स्वयं जितना विद्वान्‌, गुणी और सभी कलाओं में पारंगत था, दुर्भाग्य से उसके तीनों पुत्र उतने ही मूर्ख और अज्ञानी थे।
राजा अमरशक्ति इस बात से बहुत परेशान थे कि उनके बेटे राजा कैसे बनेंगे। पुत्रो की मूर्खता और अज्ञानता ने राजा को गहरा दुःख दिया था। राजा अमरशक्ति ने अपने पुत्रों की इस स्थिति को बदलने के लिए बहुत प्रयास किए, लेकिन उनमे कोई सुधार नहीं हुआ।

17.png

राजा ने अपने मंत्रियों से सलाह मांगी और कहा, हमें ऐसा उपाय ढूंढ़ना होगा जिससे मेरे तीनो पुत्र समझदार बन सकें। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए राजा ने कहा, हमारे राज्य में तो हजारों विद्वान्, कलाकार और महापंडित रहते हैं। उनमे से सबसे बडे महापंडित को बुला कर लाओ, जो मेरे पुत्रो को शिक्षा दे सके।
मंत्रियों ने काफी सोच विचार के बाद, राजा को एक बहुत ही बुद्धिमान महापंडित के बारे में बताया। उस महापंडित का नाम आचार्य विष्णु शर्मा था। सुमति नाम के एक मंत्री ने कहा, “महाराज, इंसान का जीवन बहुत छोटा और अनिश्चित होता है। हमारे राजपुत्र अब बड़े हो गए हैं। अगर वे सही से व्याकरण और शब्दशास्त्र पढ़ेंगे, तो इसमें बहुत समय लग जाएगा। बेहतर होगा कि उन्हें किसी छोटे ग्रंथ से पढ़ाई कराई जाए। मंत्री सुमति ने बताया, कि महापंडित विष्णु शर्मा एक बहुत बड़े विद्वान हैं, और वे एक आसान और संक्षिप्त ग्रंथ के जरिए, राजपुत्रों को जल्दी से कम समय में शिक्षित कर सकते है। शहर के सभी लोग आचार्य विष्णु शर्मा के ज्ञान और विद्या का बहुत आदर करते है।”

31.png

राजा अमरशक्ति ने तुरंत महापंडित विष्णु शर्मा को बुलाया। राजा ने विनम्रता के साथ उनसे अनुरोध किया, “आचार्य, कृपया मेरे पुत्रों को शिक्षा दें ताकि वे ज्ञान प्राप्त कर सकें। मैं आपको दक्षिणा में सौ गाँव प्रदान करूँगा।“ महापंडित विष्णु शर्मा ने उत्तर दिया, “महाराज, मैं विद्या का विक्रय नहीं करता। सौ गाँव लेकर विद्या बेचना मेरी नीति के खिलाफ है। लेकिन मैं यह वचन देता हूँ, कि मैं आपके पुत्रों को केवल छह महीनो में ही, सभी शास्त्रों में पारंगत कर दूंगा। यदि ऐसा नहीं कर सका, तो ईश्वर मुझसे मेरा सारा ज्ञान और मेरी सारी विद्या छीन ले, और मुझे विद्या से शून्य कर दे।” महापंडित की इस कठिन प्रतिज्ञा को सुनकर राजा और उनके मंत्री चकित रह गए। लेकिन राजा ने महापंडित की प्रतिज्ञा को स्वीकार कर लिया, और अपने तीनों पुत्रों को उनकी देख रेख में सौंप दिया।
महापंडित विष्णु शर्मा ने राजपुत्रों को अपने निवास पर बुलाया, और उन्हें शिक्षा देने का कार्य शुरू किया। विष्णुशर्मा समझ गए थे कि उन्हें कुछ ऐसा करना होगा जिससे राजकुमारों को पढ़ाई में मज़ा आए। उन्होंने छह महीनो के भीतर राजपुत्रों को शिक्षा देने के लिए, एक अत्यंत रोचक और उपयोगी ग्रंथ तैयार किया। इस ग्रंथ में पाँच तंत्र थे। ये पाँच तंत्र विभिन्न प्रकार की नीतियों और परिस्थितियों को समझाने में मदद करते हैं। इस ग्रंथ को 'पंचतंत्र' नाम दिया गया।
महापंडित विष्णु शर्मा ने राजपुत्रों को इस ग्रंथ के माध्यम से ज्ञान प्रदान किया, और उन्हें विभिन्न कहानियों के माध्यम से शिक्षा दी। इन कहानियों में न केवल मनोरंजन था, बल्कि महत्वपूर्ण नैतिक और नीतिशास्त्र की बातें भी थीं। विष्णुशर्मा की कहानियां बहुत ही रोचक होती थीं। इन कहानियों में जानवर, पक्षी और पेड़-पौधे बातें करते थे। इन कहानियों के माध्यम से विष्णुशर्मा, उन राजकुमारों को जीवन के कई महत्वपूर्ण सबक सिखाते थे।

34.png

राजकुमारों को विष्णुशर्मा की कहानियां बहुत पसंद आती थीं। वे धीरे-धीरे कहानियों में डूब जाते थे, और इसके साथ ही जीवन के कई महत्वपूर्ण सबक सीखने और समझने लगे थे। पंचतंत्र की कहानिया भी कुछ इस तरह से लिखी गई है, कि एक कहानी के भीतर से दूसरी और दूसरी कहानी के भीतर से तीसरी कहानी निकलती जाती है। हर एक कहानी बिलकुल अलग, फिर भी एक दूसरे से जुडी हुई होती है।

समय बीतने के साथ, राजपुत्रों ने महापंडित विष्णु शर्मा के ग्रंथ का ध्यानपूर्वक अध्ययन किया और उसमें छिपी नीतियों को समझा। उन्होंने ग्रंथ से प्राप्त ज्ञान को अपने जीवन में लागू किया और अपने व्यवहार में बदलाव देखा। छह महीनो के अंत में, राजपुत्र नीतिशास्त्र में पूरी तरह से पारंगत हो गए। उन्होंने जीवन के कई महत्वपूर्ण सबक सीखे और एक अच्छे इंसान बन गए।

37.png

राजा अमरशक्ति ने अपने पुत्रों के सुधार को देखकर अत्यंत प्रसन्नता महसूस की। वे महापंडित विष्णु शर्मा के प्रति आभार से भरे हुए थे, और उन्होंने विष्णु शर्मा के ज्ञान और विद्या की गहराई को सच्चे मन से स्वीकार किया। महापंडित ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की, और राजा के पुत्रों को ज्ञान की दिशा में सफलता दिलाई। इस प्रकार, राजा अमरशक्ति के पुत्र ज्ञान और विवेक में निपुण हो गए, और राजा को अपने पुत्रों की स्थिति देखकर बहुत ख़ुशी हुई। महापंडित विष्णु शर्मा की विद्या और मेहनत ने यह साबित कर दिया, कि सच्ची शिक्षा और सही मार्गदर्शन से किसी भी व्यक्ति को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है।

42.png

इसी के साथ पंचतंत्र के उदगम या रचना की कहानी यही पर समाप्त होती है; जो यह बताती है, कि क्यों और कैसे पंचतंत्र की शुरुआत हुई थी।