कोणार्क का सूर्य मंदिर | Konark Sun Temple
कोणार्क का सूर्य मंदिर | Konark Sun Temple
Konark Sun Temple in Hindi
Konark Sun Temple in Hindi ( Konark Ka Surya Mandir ) –
_ कोणार्क सूर्य मंदिर भारत में उड़ीसा राज्य के पूरी नामक विश्वविख्यात धार्मिक स्थान से लगभग 35 किलोमीटर उत्तर-पूर्व की ओर सागर के रमणीय तट पर स्थित यह मन्दिर आज भी भारतीय कला के चुने हुए उदाहरणों में प्रमुख स्थान रखता हैं. एक ताम्रपात्र से प्राप्त सूचना के अनुसार इस मंदिर का निर्माण गंगवंशी राजा नरसिंहदेव ( 1237 – 63 ई. ) में अपने शासन के 18वें वर्ष में कराया था. सन् 1984 में यूनेस्को ( UNESCO ) ने इसे विश्व धरोहर स्थल ( World Heritage Site ) के रूप में मान्यता दी है._
यह मंदिर कभी पूरा हो भी सका, इस तथ्य में कलाविदों को संदेह हैं. ऐसा लगता है कि मंदिर के पूर्ण होने से पहले ही इसकी नीव ने धसना शुरू कर दिया. पर्सीब्राउन ने ठीक ही लिखा हैं – “इस मंदिर की अवधारणा किसी अपूर्व प्रतिभाशाली पुरूष की थी, किन्तु इसके विशाल ऐश्वर्य के अनुपात में इसको कार्यान्वित करने के साधन कम पड़ गये. यह असफलता भी गौरव मयी थी, क्योंकि इसके भग्नावशेष की तुलना में रखने के लिए कोई उदाहरण नहीं मिलता. सम्भवतः यह भारतीय वास्तु-क्लाविदों के सुंदर और महान प्रयासों में से एक हैं.”
यद्यपि आज इस मंदिर का अधिकाँश भाग गिर चुका है, तथापि अवशिष्ट भाग इसके मूलरूप की कल्पना को साकार करने में समर्थ हैं. आज इसके खण्डहर रेट के टीले पर पिरामिड के समान स्थित है और दूर से देखने पर यह काले पगोडे के समान उन्नत सीमा चिन्ह सा प्रतीत होता हैं. कुछ अत्यंत विशाल मूर्तियाँ जो मंदिर के ढाँचे में संयुक्त करने के लिए बनी होंगी, भूमि पर यत्रतत्र गिरी पड़ी हैं. परन्तु इतनी उंचाई से गिरने पर भी उनमें आघात अथवा टूटने के कोई चिन्ह नहीं हैं. निस्संदेह यह इसके वास्तुशिल्प का महनीय कौशल है.
इसी कारण अकबर के विख्यात नवरत्नों में से एक विद्वान् अबुल फ़जल ( Abul-Fazl ) ने इसकी प्रशंसा करते हुए आईने अकबरी ( Ain-I-Akbari ) में लिखा है कि यह मंदिर उन कलापारखियों को भी आश्चर्य चकित कर देता हैं, जो सामान्यतः किसी भी वस्तु से अप्रभावित ही रहते हैं.
कोणार्क सूर्य मंदिर का चुम्बकीय पत्थर | Konark Sun Temple Magnet
ऐसा माना जाता है कि कोणार्क के सूर्य मंदिर के शिखर पर एक चुम्बकीय पत्थर ( Magnet Stone ) भी लगा था. इसके प्रभाव के कारण, कोणार्क के समुद्र से गुजरने वाली जलयान इस ओर खींचे चले आते थे, जिससे उन्हें काफी नुकसान होता था. अन्य कथा के अनुसार इस चुम्बकीय पत्थर के कारण पोतों के चुम्बकीय दिशा निरूपण यंत्र सही दिशा नहीं बताते. इस कारण अपने जलयान को बचाने हेतु, नाविक इस पत्थर को निकल ले गये. यह पत्थर एक केन्द्रीय शिला का काम कर रहा था, जिससे मंदिर की दीवारों के सभी पत्थर संतुलन में थे इसके हटने के कारण, मंदिर की दीवारों का संतुलन खो गया और परिणामतः वे गिर पड़ी. परन्तु इस घटना का कोई एतिहासिक विवरण नही मिलता, ना ही ऐसे किसी चुम्बकीय केन्द्रीय पत्थर के अस्तित्व का कोई लेख उपलब्ध हैं.
कोणार्क सूर्य मंदिर का पौराणिक महत्व | Konark Surya Mandir Ka Pauranik Mahatv
यह मन्दिर सूर्य-देव को समर्पित था, जिन्हें स्थानीय लोग बिरंचि-नारायण कहते थे. पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को उनके श्राप से कोढ़ रोग हो गया था. साम्ब ने मित्रवन में चंद्रभागा नदी के सागर संगम पर कोणार्क में, बारह वर्षों तक तपस्या की और सूर्य देव को प्रसन्न किया था. सूर्यदेव, जो सभी रोगों के नाशक थे, ने इसके रोग का भी निवारण कर दिया था. तदनुसार साम्ब ने सूर्य भगवान का एक मन्दिर निर्माण का निश्चय किया. अपने रोग-नाश के उपरांत, चंद्रभागा नदी में स्नान करते हुए, उसे सूर्यदेव की एक मूर्ति मिली. यह मूर्ति सूर्यदेव के शरीर के ही भाग से, देवशिल्पी श्री विश्वकर्मा ने बनायी थी. साम्ब ने अपने बनवाये मित्रवन में एक मन्दिर में, इस मूर्ति को स्थापित किया, तब से यह स्थान पवित्र माना जाने लगा.
कोणार्क सूर्य मंदिर के ध्वस्तता के विवरण | Konark Sun Temple Destruction Details
मंदिर के ध्वस्त्तता के मुख्य कारण मुस्लिक आक्रमण और वास्तुदोष को माना जाता हैं. आपको यह पता होगा कि इसका काफी भाग ध्वस्त (गिर) चुका हैं. इसका मुख्य कारण वास्तु दोष भी माना जाता हैं, लेकिन मुस्लिम आक्रमणों की भूमिका अहम रही हैं.
कोणार्क सूर्य मंदिर का स्थापत्य कला | Konark Sun Temple Architecture
मुख्य मन्दिर 3 मंडपों में बना हुआ है. इनमें से दो मंडप गिर चुके हैं. तीसरे मंडप में जहाँ मूर्ती थी, अंग्रेज़ों ने भारतीय स्वतंत्रता से पूर्व ही रेत व पत्थर भरवा कर सभी द्वारों को स्थायी रूप से बंद करवा दिया था ताकि वह मन्दिर और क्षतिग्रस्त ना हो पाए. इस मन्दिर में सूर्य भगवान की तीन प्रतिमाएं हैं –
बाल्यावस्था – उदित सूर्य
युवावस्था – मध्याह्न सूर्य
प्रौढ़ावस्था – अस्त सूर्य
इसके प्रवेश पर दो सिंह हाथियों पर आक्रामक होते हुए रक्षा में तत्पर दिखाये गए हैं. यह सम्भवतः तत्कालीन ब्राह्मण रूपी सिंहों का बौद्ध रूपी हाथियों पर वर्चस्व का प्रतीक है. दोनों हाथी, एक-एक मानव के ऊपर स्थापित हैं. ये प्रतिमाएं एक ही पत्थर की बनीं हैं. ये 28 टन की 8.4 फीट लंबी 4.9 फीट चौड़ी तथा 9.2 फीट ऊंची हैं. मंदिर के दक्षिणी भाग में दो सुसज्जित घोड़े बने हैं, जिन्हें उड़ीसा सरकार ने अपने राजचिह्न के रूप में अंगीकार कर लिया है. ये 10 फीट लंबे व 7 फीट चौड़े हैं.
मंदिर सूर्य देव ( God Sun ) की भव्य यात्रा को दिखाता है. इसके के प्रवेश द्वार पर ही नट मंदिर है. ये वह स्थान है, जहां मंदिर की नर्तकियां, सूर्यदेव को अर्पण करने के लिये नृत्य किया करतीं थीं. पूरे मंदिर में जहां तहां फूल-बेल और ज्यामितीय नमूनों की नक्काशी की गई है. इनके साथ ही मानव, देव, गंधर्व, किन्नर आदि की अकृतियां भी एन्द्रिक मुद्राओं में दर्शित हैं. इनकी मुद्राएं कामुक हैं और कामसूत्र से लीं गईं हैं. मंदिर अब अंशिक रूप से खंडहर में परिवर्तित हो चुका है. यहां की शिल्प कलाकृतियों का एक संग्रह, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के सूर्य मंदिर संग्रहालय में सुरक्षित है. महान कवि व नाटकार रविंद्र नाथ टैगोर ने इस मन्दिर के बारे में लिखा है- “कोणार्क जहां पत्थरों की भाषा मनुष्य की भाषा से श्रेष्ठतर है.”
तेरहवीं सदी का मुख्य सूर्य मंदिर, एक महान रथ रूप में बना है, जिसके बारह जोड़ी सुसज्जित पहिये हैं, एवं सात घोड़ों द्वारा खींचा जाता हैं. मंदिर की प्रत्येक इंच, अद्वितीय सुंदरता और शोभा की शिल्पाकृतियों से परिपूर्ण है. इसके विषय भी मोहक हैं, जो सहस्रों शिल्प आकृतियां भगवानों, देवताओं, गंधर्वों, मानवों, वाद्यकों, प्रेमी युगलों, दरबार की छवियों, शिकार एवं युद्ध के चित्रों से भरी हैं. इनके बीच बीच में पशु-पक्षियों (लगभग दो हज़ार हाथी, केवल मुख्य मंदिर के आधार की पट्टी पर भ्रमण करते हुए) और पौराणिक जीवों, के अलावा महीन और पेचीदा बेल बूटे तथा ज्यामितीय नमूने अलंकृत हैं.
कोणार्क डांस फेस्टिवल | Konark Dance Festival
1989 में शुरू किया गया कोणार्क नृत्य महोत्सव 1 से 5 दिसंबर (पांच दिवसीय) नृत्य समारोह है जो दिसंबर के महीने में हर साल आयोजित होता हैं. यह भारत में आयोजित सबसे बड़े नृत्य त्यौहारों में से एक है.
कोणार्क के सूर्य मंदिर भारतीय शिल्प के इतिहास की एक बेजोड़ दास्तान हैं. यह फेस्टिवल इस विरासत को महसूस करने और सहेजने का एक शानदार जरिया है. इन अद्भुत मंदिरों की पृष्ठभूमि में समुद्र की लहरों की गर्जना के बीच खुले मंच में होने वाला यह महोत्सव भारत के शास्त्रीय और पारंपरिक नृत्य-संगीत की जादुई छवि पेश करता है.
कोणार्क सूर्य मंदिर के बारें में अन्य रोचक तथ्य | Other Interesting Facts about Konark Sun Temple
एक रिपोर्ट के अनुसार, 2011 में 19,19,625 पर्यटक आये थे, 2012 में 23,06,658 पर्यटक और 2013 में 23,34,556 पर्यटक कोणार्क का सूर्य मंदिर देखने आये थे. वर्तमान में अनुमानित 30 से 40 लाख पर्यटक प्रति वर्ष आते होंगे. यानि प्रतिदिन 8 हजार से 11 हज़ार पर्यटक.
2018 में, जो 10 के नोट रिजर्व बैंक ने जारी किया उसमें कोणार्क सूर्य मंदिर ( Konark Sun Temple ) हैं.
कोणार्क के सूर्य मंदिर में कामुक मुद्राओं वाली शिल्पाकृतियों के लिये भी प्रसिद्ध है.
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