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RE: सुख : स्वरूप और चिन्तन (अंतिम भाग # ४) | Happiness : Nature and Thought (Final Part # 4)
@mehta
आपकी यह पोस्टें मैंने पढ़ी मुझे बोहोत ही अच्छा महसूस हुआ , आपने यह जो सुखद जीवन के बारे में बताया है बोहोत ही अच्छे तरीके से बताया है , अक्सर हम सब सुख के लिए भागते रहते है , लेकिन सुख सिर्फ हमारे विचारों में ही है , हमारी जिह्वा में मिठास है तो हम सबके साथ मित्रता से रहेंगे अगर हमारी जिह्वा में कटुता है तो सभी मित्र भी दुश्मन बन जायेंगे , सोचने वाली बात है सब सुख ढूंढ रहे है , और सब हमारे भीतर ही है , मानो तो भगवान् है और ना मानो तो माटी