सुख : स्वरूप और चिन्तन (अंतिम भाग # ४) | Happiness : Nature and Thought (Final Part # 4)
सुख : स्वरूप और चिन्तन (अंतिम भाग # ४) | Happiness : Nature and Thought (Final Part # 4)
पिछली तीनों पोस्ट से आगे बढ़ते हुए हम सुख पर इस उदाहरण को पूरा करते हुए समझने का प्रयत्न करते हैं ।
मैं कुछ नरम पड़ा । मैंने कहा – “भाई ऊंट ! और मनुष्यों की बात न कर । आज मनुष्य नहीं रहा, वह राक्षस बनता जा रहा है । किन्तु मैं तो वैसा मनुष्य नहीं हूँ । मेरी समझ में तो मैं तुमसे बहुत अच्छा हूँ ।”
ऊंट फिर हंस पड़ा । बोला – “अच्छा, जरा कहो तो कि तुम मुझसे किस प्रकार अच्छे हो ? तुम में क्या विशेषता है ?”
मैं विचार में पड़ गया ! सोचने लगा, सचमुच धन के सिवाय मेरे पास और क्या है जिसका मैं गर्व करूं ? फिर भी मैंने साहस करके कहा – “देख भाई ऊंट, मैं बहुत त्याग करता हूँ, सदा जीवन व्यतीत करता हूँ, खादी पहनता हूँ ।”
ऊंट ने कहा – “इसमें गर्व करने की क्या बात है ? मुझे देख मैं तो कुछ भी नहीं पहनता ।”
“मैं बहुत सादा भोजन करता हूँ । .... ।”
“बस ! मुझे देख, मैं तो केवल पत्तियां ही चबाकर रह जाता हूँ ।”
मैंने कहा – “मैंने गृहस्थाश्रम का भी त्याग कर दिया है ।”
“अरे, मैंने तो गृहस्थाश्रम में प्रवेश भी नहीं किया । मैं तो बाल ब्रह्मचारी हूँ ।” ऊंट ने कहा ।
थोड़ा और विचार करके मैंने कहा – “मेरे में ईर्ष्या, द्वेष अधिक नहीं है । झूठ भी मैं बहुत ही कम बोलता हूँ । क्रोध भी कम ही आता है ।”
ऊंट ने उत्तर दिया – “इसमें तूने क्या नौ की तेरह कर दी । कौन-सा तीर मार लिया । मुझमें न ईर्ष्या है, न द्वेष है और न ही क्रोध है । और झूठ तो मैंने जीवन में कभी बोला ही नहीं ।”
मैंने कहा – “मुझ में सेवावृति है ।”
ऊंट ने कटु सत्य कहा – “तुम्हारी सेवावृति का रूप तो हमें प्रतिदिन देखने को मिलता है । गाय के बछड़े का दूध स्वयं पी जाते हो और वह सूखी घास चबाता है । असंख्य बैलों, घोड़ों और ऊँटों पर असह्य बोझा लाद-लादकर तुम उनकी चमड़ी चाबुकों से छील देते हो, उनका दम निकाल देते हो, अपनी मोटरों के नीचे कुचल देते हो । और यहाँ पर मेरे सामने अपनी सेवावृति का ढोल बजाते हो । धिक्कार है तुम्हारी सेवावृति पर, धिक्कार है तुम्हारे अभिमान पर, हजार बार धिक्कार है तुम्हारे पाखण्ड पर ।”
“यदि तुम सेवा का अर्थ जानना चाहते हो तो मेरी ओर देखो – मैं कुछ नहीं पहनता, सूखे पत्ते चबाकर निर्वाह कर लेता हूँ, तुम्हारे हंटर और चाबुक सहन करता हुआ तुम्हारी सेवा करता रहता हूँ । इसे कहते है सेवाव्रत । तुम्हें पहनने के लिए सुंदर कीमती वस्त्र चाहिए, सेवा करने के लिए सेवक चाहिए, खाने के लिए स्वादिष्ट भोजन चाहिए, रहने के लिए महल चाहिए, चलने के लिए मोटर गाड़ी चाहिए, अरे अभिमानी मनुष्य ! तुझे क्या नहीं चाहिए ? तेरी अभिलाषा का क्या कहीं अन्त है ? धिक्कार है तुम पर और तुम्हारे मानव समाज पर । उस पर तुर्रा यह कि तुम स्वयं को हमसे श्रेष्ठ मानते हो ।”
ऊंट की बात मेरे ह्रदय में उतर गई । मुझे आत्म ग्लानि हुई । मेरी अन्तरात्मा पुकारने लगी, ‘अरे मुर्ख, तू ऊंट से भी गया-गुजरा है ।’
अत: इस दृष्टान्त को पढ़ने के बाद, एक बार विचार कीजिए कि आप कौन हैं ? आप क्या कर रहे हैं ? आपका लक्ष्य क्या हैं ? क्या आप अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सही मार्ग पर चल रहे हैं ? कही आप भ्रम में तो नहीं डूबे हैं ?
मुझे विश्वास है कि यदि आप इतना-सा विचार करेंगे तो आपको सच्चे सुख का सरोवर अपने नेत्रों के सामने लहराता दृष्टिगोचर होगा ।
पिछली तीनों पोस्ट का जुडाव है -
१. https://steemit.com/life/@mehta/or-happiness-nature-and-thought-part-1
२. https://steemit.com/life/@mehta/or-happiness-nature-and-thought-part-2
३. https://steemit.com/life/@mehta/or-happiness-nature-and-thought-part-3
The English translation of this post with the help of google tool as below:
Moving forward from the last three posts, we try to understand pleasure while fulfilling this example.
I had some soft I said - "Brother camel! And do not talk to humans. Today man is no longer being, he is becoming a monster. But I am not such a man. I understand that I am very good to you. "
The camel had swan again. Speak - "Well, just say how good are you to me? What's the specialty in you? "
I got into the idea! Thinking, what else do I have besides the money, whose pride I am? Still, I boldly said, "Look, brother Camel, I sacrifice a lot, I live forever, I wear khadi."
Camel said - "What's the point of pride in it? Look at me I do not wear anything. "
"I do a very simple meal. ..... "
"Bus ! Look at me, I only chew the leaves. "
I said - "I have sacrificed even a house of worship."
"Hey, I did not even enter home. I am a child Brahmachari. "The camel said.
By thinking a bit more I said - "Jealous in me, hatred is not much. I also lie too little speak Anger also comes less. "
The camel answered - "You have thirteen of nine. Which arrow did you kill? I have no jealousy, neither hate nor anger. And I have never said anything in life. "
I said - "I have retirement."
The camel said the bitter truth - "The form of your service is available to us every day. The cow's calf milk itself drinks and it chews the dry grass. By inflicting unbearable burden on innumerable oxen, horses and camels, you peel them with whips, they thrust them, they crush under their motors. And here I am playing the drum of my service. Woe is on your service, damn on your pride, for thousands of times you are cursed. "
"If you want to know the meaning of the service, then look at me - I do not wear anything, I will feed the dry leaves, I will continue to serve you while bearing your hunter and whip. It is called Savarkar. You need beautiful clothes to wear, you need a servant to serve, you need delicious food to eat, you need a palace to stay, you need a motor car to walk, arrogant man! What do not you want What is your wish? Damn you and on your human society Torture on it that you consider yourself to be superior to us. "
The camel thing came down in my heart. I was self-conscious. My soul began to cry, 'Hey idiot, you have gone through camel-gone'.
So after reading this parable, once you think who you are? What are you doing What are your goals? Are you on the right track to achieve your goal? Have you not been confused in delusion?
I believe that if you think so much then you will see the lake of true happiness waving in front of your eyes.
जिंदगी में चाहे कितने कितने भी कष्ट क्यो ना आये पर जो इंसान हर उस छोटी
बात में भी खुशी ढूढता है आखिर कर खुश वही इंसान रह पाता है,
वरना दुख तो हर किसी के नसीब में तो होते ही है
जरूरत है तो सिर्फ खुशी के तलाश की
धन्यवाद।।।।
@mehta
जीवन में किसी को रूलाकर
हवन भी करवाओगे तो कोई फायदा नहीं
और
अगर रोज किसी एक आदमी को भी हंसा दिया
तो आपको अगरबत्ती भी जलाने की जरूरत नहीं!
hello Ican't India hhhhh
I dont understand what are you saying
@mehta u r too good... Bringing all these articles in our hindi language... Mere comments per aapne kabhi dhyaan nhi dya kyunki Hindi mein nhi hota hai... But I am a fan of urs...
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ये लो आप भी थोड़े से मजे ले लो.
मुझे हिंदी में थोडा ज्यादा समझ में आता है, English में थोडा हाथ तंग है.
Kya sir mere maje le rahe Ho...
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हम क्यों किसी के मजे लेने लगे. बस थोड़ा सा मजाक कर रहे थे.
आप को गलत लगा हो तो माफी चाहता हूँ.
Are nhi sir... Majaak to sehat ke lye acha hota hai... Isi se insaan khush rahta hai... So please I am sorry.. Majaak krna kabhi mt chodna
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the main affection in life between two human beings, and mutual trust, mutual understanding, mutual understanding between us and him, thank you for saying to @mehta. Good luck always....?
अपने लोगों, अपने पिता और आपकी माँ से छायांकन से अलग होने के नाते। शायद यह आपकी पहचान और उपहार है। प्रकृति जहां आप बड़े हुए थे, आप जिस तरह से बात करते हैं, उस पर चलते हैं और प्रतिक्रिया करते हैं, इस पर असर डाल सकते हैं।
@mehta
आपकी यह पोस्टें मैंने पढ़ी मुझे बोहोत ही अच्छा महसूस हुआ , आपने यह जो सुखद जीवन के बारे में बताया है बोहोत ही अच्छे तरीके से बताया है , अक्सर हम सब सुख के लिए भागते रहते है , लेकिन सुख सिर्फ हमारे विचारों में ही है , हमारी जिह्वा में मिठास है तो हम सबके साथ मित्रता से रहेंगे अगर हमारी जिह्वा में कटुता है तो सभी मित्र भी दुश्मन बन जायेंगे , सोचने वाली बात है सब सुख ढूंढ रहे है , और सब हमारे भीतर ही है , मानो तो भगवान् है और ना मानो तो माटी
Sukh humesha unteratma se aata h, agar apki Aatma khush h to AAP bhi khush.
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ये बात काफी हद तक सही है की सच्चा सुख तो सादी जिंदगी में ही मिलता है लेकिन दिखावे की जिदगी की वाही वाही नहीं मिलती,जो आज के समय में सब को चाहिए.
एकदम सही कहा।।
इंसान इस दुनिया का सबसे घटिया प्राणी है। जो बस अपना मतलब निकालता है।
आज एक युग में मनुष्य एक अंधेरी दोड दोड रहा हे उसमे वह सबकुछ भुलता जा रहा हे रिस्तो की एहमियत कम हो गयी हे हर कोई इस दुनिया पर अपना वर्चस्वः कायम करना चाहता हे